NBPNEWS/मोहला, 15 नवंबर 2025
भगवान बिरसा मुंडा जी की जयंती को पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में उत्साहपूर्वक मनाया जा रहा है, लेकिन मोहला जिला मुख्यालय में आयोजित जिला स्तरीय कार्यक्रम प्रशासन की लापरवाही के कारण फीका पड़ गया। भव्य मंच, योजनाओं की प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रम तो सजे थे, मगर सबसे बड़ा सवाल—लोग कहां थे?
क्या प्रशासन जनता को बुलाना भूल गया?
आदिवासी बहुल पाँचवीं अनुसूची जिले में आयोजित इस बड़े कार्यक्रम में अपेक्षित भीड़ नजर नहीं आई।
लोगों ने साफ कहा—
न तो आमंत्रण कार्ड मिला,
न आने-जाने की उचित व्यवस्था।
कई बैगा समुदाय के लोगों ने बताया कि उन्हें न कार्ड मिला, न आने जाने की व्यवस्था, पंचायत के सूचना पर पहुंचे।
शहीद परिवारों ने तो और भी गंभीर स्थिति बताई—
“कार्यक्रम के एक दिन पहले शाम को फोन आया, और हम अपने साधन से जैसे-तैसे पहुंचे।”
क्षेत्रीय समाज प्रमुखों ने बताया कि उन्हें केवल व्हाट्सएप फॉरवर्ड कार्ड और फोन कॉल से बुलाया गया—जो कि जिला स्तरीय कार्यक्रम के लिए अत्यंत असम्मानजनक माना गया।
मुख्य अतिथि आए—लेकिन जनता नहीं
कार्यक्रम में विधायक डोमनलाल कोर्सेवाड़ा, जिला पंचायत अध्यक्ष नम्रता सिंह, भाजपा जिला अध्यक्ष दिलीप शर्मा सहित जनप्रतिनिधि तो मौजूद थे, लेकिन जिन जनता और समुदायों के लिए कार्यक्रम था—वे नदारद रहे।
सबसे शर्मनाक—छात्रावास के बच्चों पर भी उपेक्षा
सबसे दुःखद तस्वीर रही—छात्रावास के बच्चों की।
दोपहर से बुलाए गए, घंटों धूप-छाँव में बैठे रहे
किसी अधिकारी ने ध्यान नहीं दिया।
नाश्ता–चाय तक नहीं मिली।
बच्चे खुद मुर्रा, चना, नड्डा खरीदकर भूख मिटाते नजर आए
जिन बच्चों की उपस्थिति दिखाकर कार्यक्रम की भीड़ बढ़ाने की कोशिश हुई, उन्हें ही सबसे ज्यादा अनदेखा किया गया। अधिकारी और जनप्रतिनिधि काजू बिस्किट के लुफ्त उठा रहे थे और बच्चे भूखे बैठे मुंह ताकते रहे।
क्या यही है जनजातीय गौरव दिवस की भावना?
क्या प्रचार की कमी थी या प्रशासन की उदासीनता?
केंद्र की मोदी सरकार और राज्य की विष्णुदेव सरकार लगातार जनजातीय समुदायों के उत्थान पर जोर दे रही हैं। प्रदेशभर में जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम धूमधाम से सफल हो रहे हैं। लेकिन मोहला जिला मुख्यालय का यह कार्यक्रम कई सवाल खड़े कर गया—
क्या जिला प्रशासन ने सही समय पर प्रचार-प्रसार किया?
क्या समाज प्रमुखों, बैगाओं और शहीद परिवारों को सम्मानजनक आमंत्रण नहीं दिया जाना चाहिए था?
क्या भीड़ दिखाने के लिए छात्रावास के बच्चों को बुलाकर उन्हें इस तरह भूखा बैठाना उचित था?
क्या यह वास्तव में सफल कार्यक्रम था?
लोगों की नजर में—कार्यक्रम ‘असफल’
जिनके लिए कार्यक्रम था—वे नहीं पहुंचे।
जिन्हें सम्मान देना था—उन्हें आमंत्रण तक नहीं मिला।
जिन बच्चों को बुलाया गया—उन्हें नाश्ता और देख–रेख तक नहीं दी गई।
आखिर सवाल उठना लाजमी है—
क्या यह प्रशासन की बड़ी चूक नहीं?
जनजातीय गौरव दिवस का कार्यक्रम संदेश देने में विफल रहा।
प्रशासन की लापरवाही ने यह दिखा दिया कि आयोजन सिर्फ मंच और माइक से नहीं सफल होता—समुदाय की भागीदारी और सम्मान सबसे जरूरी है।
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