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बस्तर के अंतिम महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव: आदिवासी अधिकारों के संघर्ष का अमर बलिदान

NBPNEWS/छत्तीसगढ़ - बस्तर/ 25 मार्च 2025। आज का दिन बस्तर के इतिहास में एक शोकपूर्ण घटना की याद दिलाता है। 25 मार्च 1966 को बस्तर के अंतिम महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव को आजाद भारत की लोकतांत्रिक सरकार की पुलिस ने गोलियों से भून दिया था। यह घटना सिर्फ एक राजा की हत्या नहीं थी, बल्कि यह आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकारों पर हमला था, जिसे महाराजा भंजदेव ने जीवनभर सुरक्षित रखने का प्रयास किया।  
 **आदिवासी हकों के लिए संघर्ष**  
महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव ने आदिवासियों के मालिक-मुकबुजा (भूमि अधिकार) को बचाने के लिए संघर्ष किया। बस्तर रियासत को भारत गणराज्य में शामिल करने के बाद, आदिवासियों की भूमि, जल और जंगल से जुड़े अधिकारों को धीरे-धीरे कमजोर किया जाने लगा। भूमि संबंधी कानूनों में संशोधन किए गए, जिससे बाहरी लोग बस्तर की जमीन और प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करने लगे।  
 **लौहंडीगुड़ा गोलीकांड: हजारों आदिवासियों का नरसंहार**  
मार्च 1961 में लौहंडीगुड़ा गोलीकांड हुआ, जिसमें सरकारी दमन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे करीब 20,000 आदिवासियों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई। यह घटना बस्तर के आदिवासियों के लिए सबसे दर्दनाक और क्रूर घटनाओं में से एक थी।  
महाराजा भंजदेव आदिवासियों के इस दमन के विरोध में खड़े हुए और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करने लगे।1962 में उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा और बस्तर की 10 में से 9 विधानसभा सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। उनकी इस विजय ने साबित कर दिया कि बस्तर के आदिवासी उनके नेतृत्व में ही सुरक्षित महसूस करते थे।  
 **25 मार्च 1966: आदिवासी राजा का बलिदान**  
25 मार्च 1966 को महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव जगदलपुर स्थित अपने महल में आदिवासी जनता की समस्याएं सुन रहे थे। तभी पुलिस ने महल पर धावा बोल दिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के महाराजा और सैकड़ों आदिवासियों पर गोलियां चला दीं।इस निर्मम हत्याकांड में कई आदिवासी पुरुष, महिलाएं और बच्चे मारे गए।  

महाराजा का अपराध केवल इतना था कि उन्होंने आदिवासियों के हक की बात की थी। वे आदिवासियों के दिलों में बसे थे और उनके संघर्षों के सबसे बड़े योद्धा थे।  

 **स्मृति में सेवा और जोहार**  
आज 25 मार्च को उनकी पुण्यतिथि पर बस्तर के लोग उन्हें कोटी-कोटी सेवा जोहार अर्पित करते हैं। उनकी शहादत आदिवासी अस्मिता और अधिकारों के संघर्ष की प्रेरणा बनी हुई है। बस्तर के आदिवासियों के लिए वे सिर्फ एक राजा नहीं, बल्कि संघर्ष और बलिदान का प्रतीक हैं।

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