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भक्त माता कर्मा: निस्वार्थ भक्ति और समर्पण की अमर प्रतीक आज है 1009वीं जयंती

*तुलसी साहू की रिपोर्ट*
NBPNEWS/ मोहला मानपुर/25 मार्च 2025। भक्त माता कर्मा भारतीय भक्ति परंपरा की एक अनमोल धरोहर हैं, जिनकी निस्वार्थ भक्ति और भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट श्रद्धा की कहानी सदियों से लोगों को प्रेरित करती आ रही है। वे भक्ति मार्ग की महान संत थीं, जिनका जीवन कर्म, सेवा और कृष्ण भक्ति के लिए समर्पित था।  
**माता कर्मा का जन्म और प्रारंभिक जीवन**  
माता कर्मा का जन्म सन् 1615 में राजस्थान के नागौर जिले के कलावा गांव में एक जाट(साहू) किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता जीवनराम डोडी भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे और सदैव कृष्ण को भोग लगाने के बाद ही अन्न ग्रहण करते थे। उन्होंने अपनी पुत्री कर्मा को भी कृष्ण भक्ति का पाठ पढ़ाया।  
 **माता कर्मा की भक्ति और चमत्कार**  
एक बार जीवनराम तीर्थ यात्रा पर गए और अपनी बेटी से कहा कि कृष्ण को भोग लगाने के बाद ही भोजन करना। माता कर्मा ने जब भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया, तो देखा कि भगवान ने उसे ग्रहण नहीं किया। बार-बार आग्रह करने के बाद भी जब भगवान ने भोग नहीं खाया, तब माता कर्मा ने संकल्प लिया कि जब तक भगवान भोग ग्रहण नहीं करेंगे, वे भी भोजन नहीं करेंगी। तब भगवान ने मूर्ति से स्वरूप धारण कर कहा – "कर्मा, पर्दा करो तभी मैं खाऊंगा।" माता कर्मा ने साड़ी से पर्दा किया और भगवान ने पूरा भोग ग्रहण कर लिया।  
इसके बाद से माता कर्मा प्रतिदिन इसी प्रकार भगवान को भोग लगाकर उनकी सेवा करने लगीं।  

 **तीर्थ यात्रा और जगन्नाथ मंदिर से जुड़ी मान्यता**  
समय बीतने के साथ माता कर्मा ने तीर्थ यात्रा करने का निर्णय लिया और अपने घर में स्थापित भगवान कृष्ण की मूर्ति के साथ निकल पड़ीं। वे विभिन्न तीर्थ स्थलों पर भ्रमण करते हुए अंततः उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर पहुंचीं, जहां उन्होंने एक कुटिया बनाकर रहना शुरू किया और रोज़ बाजरे की खिचड़ी बनाकर भगवान को भोग अर्पित करने लगीं।  
एक दिन एक बालक उनके घर आया और रोज़ाना खिचड़ी खाने लगा। एक दिन जब मंदिर के पुजारी ने भगवान जगन्नाथ की मूर्ति देखी, तो पाया कि भगवान के मुंह में खिचड़ी लगी हुई है, जबकि मंदिर में खिचड़ी का भोग नहीं चढ़ाया जाता था। कर्मा माता के निधन के उपरांत जगन्नाथ जी की मूर्ति मायूस थी तब राजा और पुजारी ने ध्यान दिया, तो भगवान ने स्वप्न में आकर बताया कि माता कर्मा उन्हें प्रतिदिन खिचड़ी खिलाती थीं और अब उनके जाने से वे दुखी हैं।  
 **माता कर्मा का निर्वाण और भक्ति की परंपरा**  
माना जाता है कि जिस दिन माता कर्मा का निधन हुआ, उस दिन भगवान जगन्नाथ की मूर्ति से आंसू बह रहे थे। इस घटना के बाद, उड़ीसा के राजा ने आदेश दिया कि "भगवान जगन्नाथ को भोग में प्रतिदिन खिचड़ी चढ़ाई जाएगी", जो आज भी वहां की परंपरा में शामिल है।  

**माता कर्मा का योगदान और आदर्श**  
भक्त माता कर्मा केवल भक्ति की मूर्ति ही नहीं, बल्कि नारी शक्ति और निष्काम सेवा की प्रतीक थीं। उन्होंने जीवनभर समाज को सिखाया कि सच्ची भक्ति का अर्थ केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि त्याग, सेवा और प्रेम भी है। 

आज, माता कर्मा की जयंती पूरे भारत में विशेष रूप से कुर्मी समाज में धूमधाम से मनाई जाती है।इस अवसर पर भजन-कीर्तन, शोभायात्रा और भंडारे का आयोजन किया जाता है। उनकी भक्ति और समर्पण हमें सिखाते हैं कि जब प्रेम और श्रद्धा सच्ची होती है, तो भगवान स्वयं भक्त के लिए प्रकट होते हैं।

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