Nbpnews/ 12 सितम्बर/ मोहला :
डॉ. रीना कोमरे ने NBPNEWS को बताया कि छत्तीसगढ़ में आज के दिन चांवल के नये उत्पादित फसल का सेवन किया जाएगा। इसे ही नवाखाई तिहार के नाम से जाना जाता है।यह पर्व विशेष तौर पर छत्तीसगढ़ के मध्य एवं दक्षिणी क्षेत्रों में मनाया जाता है।यह प्रसिद्ध पर्व नवाखाई न केवल पुर्वजों की व्यवस्थित परंपराओं को बताता है, बल्कि इस त्यौहार का वैज्ञानिक महत्व भी रहा है।नवाखाई त्यौहार के दिन खेतों में उत्पादित नये फसल चांवल को सर्वप्रथम आराध्य देवी-देवता को अर्पित करते है।तत्पश्चात उसी चांवल के प्रसाद(खीर-भात) बनाकर घर के सभी सदस्यों को वितरित किया जाता है।यह पर्व पारिवारिक संगठन को बनाए रखने का पर्व है।
नवाखाई का चांवल सामान्य चांवल से पूर्व की अवस्था का चांवल होता है। जिसमें सामान्य चांवल की अपेक्षा 70 गुना अधिक आयरन पाया जाता है।बरसात के समय खेतों में काम करने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है, बरसाती संक्रमण से सर्दी जुकाम का खतरा बढ़़ जाता है और शरीर से आयरन भी कम होता है। नवाखाई का चांवल शरीर में होने वाले आयरन की कमी को पूरा करता है।नवाखाई का प्रसाद कोरिया के पत्ते में ग्रहण किया जाता है।कोरिया की पत्ती में ऐसे औषधीय गुण पाए जाते हैं, जिनसे सर्दी-खांसी जैसे बरसाती संक्रमण से राहत मिलती है।
नवाखाई में एक परिवार या कुल के सभी सदस्य सम्मिलित होते हैं।छत्तीसगढ़ के गोंड समुदाय में एक प्रथा यह भी है कि परिवार की भावी वधू को भी नवाखाई पर्व में शामिल किया जाता है।ताकि वह होने वाले ससुराल के पारिवारिक रीति-रिवाज़ को समझ सके।इस अवसर पर हुल्की गीत गाने और नृत्य करने की भी परम्परा है।नवाखाई संस्कृति, परम्परा और विज्ञान का त्यौहार है।
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