NBPNEWS/09 अक्टूबर 2025 छत्तीसगढ़ के नवनिर्मित आदिवासी बहुल जिले मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी और राजनांदगांव, खैरागढ़ में शासन और प्रशासन की लापरवाही उजागर करने वाला सनसनीखेज मामला सामने आया है। बिना किसी वैध परीक्षा, चयन प्रक्रिया या इंटरव्यू के फर्जी नियुक्ति आदेशों के सहारे नौ लोग पिछले 38 महीनों से स्कूल शिक्षा विभाग में सरकारी पदों पर कार्यरत हैं। इन सभी ने 6 सहायक ग्रेड-3 और 3 डाटा एंट्री ऑपरेटर जैसे संवेदनशील पदों पर फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से नौकरी हासिल कर ली थी।
🔹 मंत्री गजेंद्र यादव का बयान: “फर्जीवाड़े पर बख्शा नहीं जाएगा कोई”
इस पूरे प्रकरण पर राज्य के स्कूल शिक्षा मंत्री गजेंद्र यादव ने मीडिया से कहा,
“आपके माध्यम से यह फर्जी नियुक्ति का मामला सामने आ रहा है। भरोसा रखिए, इसकी संपूर्ण जांच कराई जाएगी और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।”
मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि सुशासन की दिशा में राज्य सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों पर काम कर रही है। उन्होंने कहा कि यदि किसी भी स्तर पर लापरवाही या मिलीभगत साबित होती है तो संबंधित अधिकारी और कर्मचारी सेवा से बर्खास्त किए जाएंगे।
🔹 38 महीने से उठा रहे हैं सरकारी वेतन
जानकारी के अनुसार, ये फर्जी नियुक्त कर्मचारी बीते तीन साल से अधिक समय से नियमित कर्मचारियों की तरह वेतन ले रहे हैं। इनमें छह सहायक ग्रेड-3 और तीन डाटा एंट्री ऑपरेटर शामिल हैं, जिन्हें ग्रेड पे 1900 और 2400 के अनुसार भुगतान हो रहा है — जबकि इनकी नियुक्ति के लिए कोई वैध आदेश, चयन सूची या विज्ञापन जारी नहीं हुआ था।
फर्जी नियुक्त कर्मचारी:
डाटा एंट्री ऑपरेटर: डोलामनी मटारी, शादाब उस्मान, अजहर सिद्दीकी
सहायक ग्रेड-3: आशुतोष कछवाहा, मोहम्मद अमीन शेख, फागेंद्र कुमार सिन्हा, टीकम चंद्र, रजिया अहमद, सीएच अंथोनी अम्मा
🔹 RTI से खुला पूरा फर्जीवाड़ा
आरटीआई के तहत की गई जांच में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि जिन नियुक्ति आदेशों पर “ओपी मिश्रा, सचिव, छत्तीसगढ़ राज्य शिक्षा आयोग” के हस्ताक्षर बताए गए, वे पूरी तरह फर्जी थे। स्वयं ओपी मिश्रा ने इस बात की पुष्टि की कि उन्होंने ऐसा कोई आदेश जारी नहीं किया।
क्या है शिक्षा आयोग के पत्र की हकीकत?
छत्तीसगढ़ राज्य शिक्षा आयोग के पत्र के मुताबिक 9 सितंबर 2021 का एक कूटरचित नियुक्ति आदेश घूम रहा था, जिसमें आयोग के सचिव ओपी मिश्रा के नाम का इस्तेमाल किया गया, लेकिन हकीकत ये है कि आयोग ने उस तारीख को कोई पत्र जारी ही नहीं किया था. आयोग का असली पत्र 28 अक्टूबर 2021 को जारी हुआ था. आयोग की स्थापना 2017 में हुई, लेकिन फर्जी लेटर में 2016 का राजपत्र दिखाया गया
🔹 अधिकारी और तंत्र सवालों के घेरे में
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार एवं आरटीआई जागरूकता संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष सुखराम साहू और डेमोक्रेटिक खदान श्रमिक संघ प्रदेश अध्यक्ष मोतीलाल हिरवानी ने प्रेस वार्ता में बताया कि बिना सत्यापन के जिला शिक्षा अधिकारी, विकासखंड शिक्षा अधिकारी और संबंधित प्राचार्यों ने इन नियुक्तियों को स्वीकृति दी। यहां तक कि कोषालय अधिकारी ने भी बिना जांच के वेतन कोड जारी कर दिया, जो प्रशासनिक लापरवाही की पराकाष्ठा है।
पैरेंट्स एसोसिएशन के किष्टोफर पॉल ने भी ज्ञापन देकर मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषियों पर FIR दर्ज करने की मांग की है. एसोसिएशन का कहना है कि तत्कालीन DEO और अभी के स्टाफ पर शक है, क्योंकि वो ही फर्जीवाड़ा के मास्टरमाइंड हो सकते हैं.
🔹 सुशासन पर बड़ा सवाल, कार्रवाई से ही लौटेगा भरोसा
फर्जी नियुक्तियों का यह मामला राज्य की शिक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक पारदर्शिता पर गंभीर प्रश्नचिह्न लगाता है।
अब जब स्वयं मंत्री ने जांच और कार्रवाई का आश्वासन दिया है, तो उम्मीद है कि दोषियों पर शीघ्र ही कड़ी कार्रवाई होगी और राज्य में सुशासन की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए यह मामला मिसाल बनेगा।
Credit:- lalluram.com
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