छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी जिले में पुलिस के "ऑपरेशन प्रयास" को बड़ी सफलता हाथ लगी है। माओवादी संगठन के शीर्ष स्तर पर कार्यरत नक्सली दंपत्ति — डीवीसीएम जीवन उर्फ राम तुलावी और उनकी पत्नी एसीएम अगासा उर्फ आरती— ने मंगलवार को राजनांदगांव रेंज के पुलिस महानिरीक्षक अभिषेक शांडिल्य और एसपी यशपाल सिंह के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
दोनों माओवादी पिछले 25 वर्षों से नक्सल संगठन में सक्रिय थे। आत्मसमर्पण के दौरान उन्होंने कहा कि वे नक्सल संगठन में व्याप्त शोषण, भेदभाव और हिंसा से तंग आकर अब मुख्यधारा में लौटना चाहते हैं।
### कौन हैं जीवन और आरती?
जीवन उर्फ राम तुलावी (45 वर्ष) ग्राम परवीडीह, थाना मोहला के रहने वाले हैं। वे माड़ डिवीजन में डिविजनल कमेटी मेम्बर (DVCM)और मोबाइल एकेडमिक स्कूल कमांडर जैसे अहम पदों पर कार्यरत थे। 2000 से लगातार संगठन में सक्रिय रहते हुए कोड़ेकुर्से और माड़ क्षेत्र में कई वर्षों तक नक्सल सदस्यों को शिक्षित करने का काम किया।
अगासा उर्फ आरती कोर्राम (38 वर्ष) ग्राम तेलीटोला, थाना मोहला निवासी हैं। उन्होंने वर्ष 2006 में 10वीं पास की और लोककला मंच के माध्यम से नक्सल संगठन से जुड़ गईं। वे चेतना नाट्य मंडली की कमांडर और एरिया कमेटी सदस्य के रूप में कार्यरत रहीं। संगठन के भीतर तकनीकी कार्यों में भी वह सक्रिय रही, जिसमें प्रेस टीम और कंप्यूटर संचालन शामिल रहा।
### क्यों किया आत्मसमर्पण?
दंपत्ति ने बताया कि नक्सल संगठन में भेदभाव और अंदरूनी राजनीति से वे निराश हो चुके थे। साथ ही बड़े नेताओं की लगातार हो रही मुठभेड़ों में मौत के बाद संगठन में डर और असंतोष का माहौल है।
छत्तीसगढ़ सरकार की नवीन आत्मसमर्पण एवं पुनर्वास नीति-2025 से प्रभावित होकर उन्होंने आत्मसमर्पण कर शांति और सम्मान का जीवन चुनने का फैसला लिया।
### सरकार से मिली सहायता
आत्मसमर्पण के तुरंत बाद दोनों को ₹50,000-₹50,000 की राहत राशि प्रदान की गई है।
इसके अतिरिक्त, उनके ऊपर घोषित इनामी राशि — जीवन के लिए ₹8 लाख और आरती के लिए ₹5 लाख — जल्द ही उन्हें दी जाएगी।
प्रशासन की ओर से उन्हें आधार, राशन, आयुष्मान कार्ड, प्रधानमंत्री आवास और कौशल प्रशिक्षण व रोजगार की सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी।
### नक्सलियों से की अपील
आत्मसमर्पित दंपत्ति ने जिले में सक्रिय अन्य नक्सलियों से भी अपील की है कि वे हथियार छोड़कर शासन की पुनर्वास नीति का लाभ लें और सपरिवार एक बेहतर व शांतिपूर्ण जीवन की ओर लौटें।
पृष्ठभूमि में आईटीबीपी और डीआरजी की भूमिका
इस सफलता में 27वीं और 44वीं वाहिनी आईटीबीपी तथा डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (DRG) की भूमिका भी अहम रही, जिन्होंने दंपत्ति के संपर्क से लेकर समर्पण तक की प्रक्रिया को पूरी गोपनीयता और सुरक्षा के साथ अंजाम दिया।
यह आत्मसमर्पण न सिर्फ शासन की पुनर्वास नीति की सफलता का प्रमाण है, बल्कि यह संकेत भी है कि नक्सलवाद अब अपनी पकड़ खोता जा रहा है और आदिवासी युवा अब शांति और विकास की राह पर लौटना चाहते हैं।
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