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लाल श्याम शाह: आदिवासी अधिकारों के संघर्षशील योद्धा


NBPNEWS/10 मार्च 2025/ मोहला : भारत के स्वतंत्रता संग्राम और स्वतंत्रता के पश्चात् सामाजिक सुधार आंदोलनों में कई ऐसे व्यक्तित्व उभरे जिन्होंने समाज के वंचित और उपेक्षित वर्गों के उत्थान के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया। ऐसे ही एक महान व्यक्तित्व थे लाल श्याम शाह, जिन्होंने विशेषकर आदिवासी समुदाय के अधिकारों और उनके कल्याण के लिए अनवरत संघर्ष किया। उनका जीवन संघर्ष, त्याग और सेवा का प्रतीक रहा है, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।

**प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि**

लाल श्याम शाह का जन्म 1 मई 1919 को तब के मध्य प्रदेश के राजनांदगांव जिले व आज के जिला मोहला मानपुर अं चौकी के मोहला क्षेत्र के पानाबरस गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनका परिवार आर्थिक रूप से संपन्न था, लेकिन उन्होंने अपने जीवन को समाज के वंचित वर्गों, विशेषकर आदिवासियों के उत्थान के लिए समर्पित किया। शिक्षा के प्रति उनकी रुचि और समाज सेवा की भावना ने उन्हें जननेता के रूप में स्थापित किया।

**आदिवासी समाज के लिए संघर्ष**

लाल श्याम शाह ने अपने राजनीतिक और सामाजिक जीवन को आदिवासी समाज के उत्थान के लिए समर्पित किया। उन्होंने आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन के अधिकारों के लिए निरंतर संघर्ष किया। उनका मानना था कि आदिवासी समाज की संस्कृति, परंपरा और संसाधनों की रक्षा के बिना उनका वास्तविक विकास संभव नहीं है। उन्होंने गोंडवाना राज्य की स्थापना की मांग की, जिसमें रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, सरगुजा, रायगढ़, बालाघाट, शहडोल और भंडारा तथा चांदा (चंद्रपुर) के कुछ हिस्सों को शामिल किया जाए। 

**राजनीतिक जीवन के उतार-चढ़ाव**

लाल श्याम शाह का राजनीतिक जीवन संघर्ष और सिद्धांतों का प्रतीक रहा है। उन्होंने 1951 में चौकी विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। उनकी याचिका पर पुनः चुनाव हुआ, जिसमें उन्होंने जीत हासिल की। यह स्वतंत्र भारत का एक अनोखा मामला था, जब पांच साल के कार्यकाल में चार बार चुनाव कराए गए। 

1962 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने चांदा (वर्तमान चंद्रपुर) से स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की। 5 सितंबर 1962 को उन्होंने सांसद के रूप में शपथ ली, लेकिन आदिवासी समाज के मुद्दों पर संसद में उनकी आवाज़ अनसुनी रहने के कारण, उन्होंने केवल एक दिन संसद में उपस्थित होने के बाद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे दिया।

**आदिवासी समाज के प्रति प्रतिबद्धता**

लाल श्याम शाह ने अपने जीवन में कई बार राजनीतिक पदों से इस्तीफा दिया, जब उन्हें लगा कि वे आदिवासी समाज के हितों की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं। उनकी यह प्रतिबद्धता उन्हें अन्य नेताओं से अलग बनाती है। उन्होंने हमेशा आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और उनकी संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए प्रयासरत रहे।

**विरासत और स्मृति**

लाल श्याम शाह की स्मृति में छत्तीसगढ़ में कई संस्थानों का नामकरण किया गया है। उनके नाम पर मोहला में लाल श्याम शाह नवीन महाविद्याल, लाल श्याम शाह इंग्लिश मीडियम स्कूल, लाल श्याम शाह बस स्टैंड और मानपुर में लाल श्याम शाह महाविद्यालय की स्थापना की गई है, जो युवाओं को शिक्षा के माध्यम से सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उनका जीवन और संघर्ष आज भी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

**निष्कर्ष**

लाल श्याम शाह का जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची सेवा और समर्पण से समाज में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। उनकी विचारधारा, निःस्वार्थ सेवा और संघर्ष आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं। उनकी जीवनी पर आधारित पुस्तक 'लाल श्याम शाह, एक आदिवासी की कहानी' आज की पीढ़ी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि वे उनके संघर्षों और आदर्शों से प्रेरणा ले सकें। 

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