NBPNEWS/14 सितंबर/ मोहला :
हर साल 14 सितंबर को "हिंदी दिवस" मनाया जाता है, जो हमारे देश की राजभाषा के रूप में हिंदी के महत्व को दर्शाने का एक अवसर है। हिंदी दिवस की शुरुआत 1949 में हुई थी जब संविधान सभा ने हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दी। यह दिन हमें हमारी भाषा की समृद्धि और विविधता की याद दिलाता है।
**हिंदी का विकास और भविष्य:**
हिंदी न केवल हमारे दैनिक जीवन का हिस्सा है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतिनिधित्व करती है। आज, हिंदी साहित्य, सिनेमा और मीडिया के माध्यम से वैश्विक स्तर पर भी अपनी पहचान बना रही है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के इस युग में हिंदी का प्रसार और भी तेजी से हो रहा है।
हिन्दी भाषा बहती है जग में
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टेडी मेडी पगडंडियों से निकली,
चलती जाती खेत खलियानों में ।
नवअंकुर बिहड़ो से निकलकर,
चलती संसद भवन के गलियारों में ।
हिंदी भाषा बहती है सारे जग में ,
हर घर,गली चौक चौवारो में ।
सभ्यता संस्कृति की परिचायक है ।
समृद्ध देश की ये विरासत है।
युवा सपनो की आवाज बनती।
उड़ती है आधुनिक आसमानों में ,
हर भारतीय के हृदय में बसती ,
जोश भरती है जवानों के हुंकारों में ।
हिंदी भाषा बहती है सारे जग में।
हर घर,गली चौक चौवारो में ।
ग्रंथो में समहित है जीवन सार ,
यश वैभव चहुओर बनते आधार ।
राष्ट्र चेतना, शिक्षा,सेवा संस्कार,
स्नेह, करुणा ममता की भाषा ।
अपनापन बिखेरती हर त्योहारों में ।
हिंदी भाषा बहती है सारे जग में ,
हर घर,गली चौक चौवारो में ।
विद्वानों,ऋषि मुनियों ने अपनाया।
अपना माना है साहित्यकारो ने ,
दर्शन चिंतन मनन की भाषा है।
मिलते महापुरुषों के व्यवहारों में ,
हिंदी भाषा बहती है सारे जग में ।
हर घर,गली चौक चौवारो में ।
अमर शहीदों के शौर्य गाथाओं में ,
खेलो,मेलो में मिलते कथाओं में ।
नारी शक्ति की मिसालें सुनाती ,
मिलते है पुस्तको में अखबारों में
हिंदी भाषा बहती है सारे जग में ,
हर घर,गली चौक चौवारो में।
मां की ममता पिता के दुलार में।
रहती भाई बहनों की शरारतों में ,
असफलता में प्रेरणा बनकर ।
सफलता में खुशी के उपहारों में ।
हिंदी भाषा बहती है सारे जग में ,
हर घर,गली चौक चौवारो में ।
जसवंत कुमार मंडावी
व्याख्याता
**निष्कर्ष:**
हिंदी दिवस का उद्देश्य हमें हिंदी भाषा की महत्ता और इसके संरक्षण की आवश्यकता की याद दिलाना है। आज के समय में, हमें गर्व के साथ हिंदी का उपयोग करना चाहिए और इसकी समृद्ध परंपरा को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।
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